विश्व धर्म महासभा के सम्मुख स्वामीजी अभिभाषण के संबंध यह कहा जा सकता है कि उन्होंने अपना भाषण आरंभ किया तो विषय था -- “हिन्दुओं के धार्मिक विचार”, किन्तु जब उन्होंने अंत किया तब तक हिन्दू धर्म की सृष्टि हो चुकी थी। इस सम्भावना के लिए समय भी परिपक्व हो चुका था। उनके सम्मुख उपस्थित विशाल श्रोता समूह पाश्चात्य विचारधारा का ही प्रतिनिधि था, लेकिन इसमें जो परमोत्कृष्ट विशेषता है, सब उस सब का कुछ विकास भी श्रोताओं में विद्यमान था। अमेरिका को और विशेष रूप से शिकागो को, जहाँ यह सम्मेलन हुआ, यूरोप के प्रत्येक राष्ट्र ने अपने मानवीय योगदान से आप्लावित किया। आधुनिक उद्योग और संघर्ष के बहुत कुछ उत्कृष्ट और उनमें से कुछ निष्कृष्ट भाव पश्चिम की इस नगरी की रानी की सीमाओ के भीतर मिलते हैं जिसे पदतल -- जब वह अपनी आँखों से उत्तर का प्रकाश पढ़ कर बैठती है और चिंतामग्न होती है -- मिशिगन झील के निकट आधुनिक ज्ञान में ऐसा बहुत कम है, यूरोप के अतीत में उत्तराधिकार में प्राय ऐसा बहुत कम है, जिसकी कोई ना कोई चौकी शिकागो की नगरी में विद्यमान ना हो। और जहाँ हममें से कुछ को इस केंद्र का जनसंकुल जीवन और अधीर विश्वृंखल ही क्यों ना प्रतीत हो, फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि यह मानव की एकता के लिए किसी महान देश धीरसंचारी आदर्श को उस समय व्यक्त करने की चेष्टा कर रहे थे, जब उसकी परिपक्वता के दिन पूर्ण हो जाएंगे।
बहन निवेदता,
4 जुलाई 1907.
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