रविवार, 4 अक्टूबर 2020

हमारे मतभेद का कारण

 विश्‍व धर्म महासभा, शिकागो, 15 सितंबर 1893

मैं आप लोगों को एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ। अभी जिन वाग्मी वक्ता ने व्याख्यान समाप्‍त किया हैं, उनके इस वचन को आप ने सुना हैं कि 'आओ, हम लोग एक दूसरे को बुरा कहना बंद कर दें', और उन्हें इस बात का बड़ा खेद हैं कि लोगों में सदा इतना मतभेद क्यों रहता हैं।

परंतु मैं समझता हूँ कि जो कहानी मैं सुनाने वाला हूँ, उससे आप लोगों को इस मतभेद का कारण स्पष्ट हो जाएगा । एक कुएँ में बहुत समय से एक मेढक रहता था। वह वहीं पैदा हुआ था और वहीं उसका पालन-पोषण हुआ, पर फिर भी वह मेढक छोटा ही था। हाँ, आज के समान ज्ञानी लोग उस समय वहाँ नहीं थे, जो हमें बतला सकते कि उस मेढक के आँखें थी अथवा नहीं, पर यहाँ कहानी के लिए यह मान लेना चाहिए कि उसके आँखें थी और वह प्रतिदिन ऐसे पुरुषार्थ के साथ जल को सारे कीड़ों और कीटाणुओं से रहित पूर्ण स्वच्छ कर देता था कि उतना पुरुषार्थ आधुनिक कीटाणु-शास्त्रियों भी को यशस्वी बना दें। 

इस प्रकार धीरे-धीरे यह मेढक उसी कुएँ में रहते-रहते मोटा और चिकना हो गया। अब एक दिन एक दूसरा मेढक, जो समुद्र में रहता था, उस कुएँ में गिर पड़ा ।

"तुम कहाँ से आये हो?"

"मैं समुद्र से आया हूँ।"

"समुद्र! भला कितना बड़ा हैं वह? क्या वह भी इतना ही बड़ा हैं, जितना मेरा यह कुआँ?" और यह कहते हुए उसने कुएँ में एक किनारे से दूसरे किनारे तक छलाँग मारी।

समुद्र वाले मेढक ने कहा, "मेरे मित्र! भला, समुद्र की तुलना इस छोटे से कुएँ से किस प्रकार कर सकते हो?"

तब उस कुएँ वाले मेढक ने दूसरी छलाँग मारी और पूछा, "तो क्या तुम्हारा समुद्र इतना बड़ा हैं?"

समुद्र वाले मेढक ने कहा, "तुम कैसी बेवकूफी की बात कर रहे हो!  क्या समुद्र की तुलना तुम्हारे कुएँ से हो सकती हैं?"

अब तो कुएँवाले मेढक ने कहा, "जा, जा! मेरे कुएँ से बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता। संसार में इससे बड़ा और कुछ नहीं हैं! झूठा कहीं का? अरे, इसे बाहर निकाल दो।"

यही कठिनाई सदैव रही हैं।

मैं हिंदू हूँ। मैं अपने क्षुद्र कुएँ में बैठा यही समझता हूँ कि मेरा कुआँ ही संपूर्ण संसार हैं। ईसाई भी अपने  क्षुद्र कुएँ में बैठे हुए यही समझता हूँ कि सारा संसार उसी के कुएँ में हैं। और मुसलमान भी अपने क्षुद्र कुएँ में बैठा हुए उसी को सारा ब्रह्मांड मानता हैं। मैं आप अमेरिकावालों को धन्य कहता हूँ, क्योंकि आप हम लोगों के इन छोटे-छोटे संसारों की क्षुद्र सीमाओं को तोड़ने का महान प्रयत्न कर रहे हैं, और मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में परमात्मा आपके इस उद्योग में सहायता देकर आपका मनोरथ पूर्ण करेंगे ।

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