विश्व धर्म महासभा, शिकागो, 27 सितंबर 1893
विश्व धर्म महासभा एक मूर्तिमान तथ्य सिद्ध हो गई हैं और दयालु प्रभु ने उन लोगों की सहायता की हैं, तथा उनके परम निःस्वार्थ श्रम को सफलता से विभूषित किया हैं, जिन्होंने इसका आयोजन किया।
उन महानुभावों को मेरा धन्यवाद हैं, जिनके विशाल हृदय तथा सत्य के प्रति अनुराग ने पहले इस अद्भुत स्वप्न को देखा और फिर उसे कार्य रूप में परिणत किया। उन उदार भावों को मेरा धन्यवाद, जिनसे यह सभा मंच आप्लावित होता रहा हैं। इस प्रबुद्ध श्रोतृ-मंडली को मेरा धन्यवाद, जिसने मुझ पर अविकल कृपा रखी हैं और जिसने मत-मतांतरों के मनोमालिन्य को हल्का करने का प्रयत्न करने वाले हर विचार का सत्कार किया। इस सम-सुरता में कुछ बेसुरे स्वर भी बीच-बीच में सुने गये हैं। उन्हें मेरा विशेष धन्यवाद, क्योंकि उन्होंने अपने स्वर-भिन्नता से इस सम-रसता को और भी मधुर बना दिया हैं।
धार्मिक एकता की सर्वसामान्य सामूहिक बुनियाद के विषय में बहुत कुछ कहा जा चुका हैं। इस समय मैं इस संबंध में अपना मत आपके समक्ष नहीं रखूँगा। किन्तु यदि यहाँ कोई यह आशा कर रहा हैं कि यह एकता किसी एक धर्म की विजय और बाकी धर्मों के विनाश से सिद्ध होगी, तो उनसे मेरा कहना हैं कि 'भाई, तुम्हारी यह आशा असम्भव हैं।' क्या मैं यह चाहता हूँ कि ईसाई लोग हिन्दू हो जाएँ? कदापि नहीं, ईश्वर भी ऐसा न करें! क्या मेरी यह इच्छा हैं कि हिंदू या बौद्ध लोग ईसाई हो जाएँ? ईश्वर इस इच्छा से बचाए।
बीज भूमि में बो दिया गया और मिट्टी, वायु तथा जल उसके चारों ओर रख दिये गये। तो क्या वह बीज मिट्टी हो जाता हैं, अथवा वायु या जल बन जाता हैं? नहीं, वह तो वृक्ष ही होता हैं, वह अपनी वृद्धि के नियम से ही बढ़ता हैं – वायु , जल और मिट्टी को पचाकर, उनको उद्भिद पदार्थ में परिवर्तित करके एक वृक्ष हो जाता हैं।
ऐसा ही धर्म के संबंध में भी हैं। ईसाई को हिंदू या बौद्ध नहीं हो जाना चाहिए, और न ही हिंदू अथवा बौद्ध को ईसाई ही। पर हाँ, प्रत्येक को चाहिए कि वह दूसरों के सार-भाग को आत्मसात् करके अपना पोषण करें और अपनी विशेषता की रक्षा करते हुए अपने धर्म के अनुसार विकास करें।
इस धर्म महासभा ने जगत के समक्ष यदि कुछ प्रस्तुत किया हैं, तो वह यह हैं:– उसने सिद्ध कर दिया हैं कि शुद्धता, पवित्रता और दयाशीलता पर किसी संप्रदाय-विशेष का एकाधिकार नहीं हैं, एवं प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ठ एवं अत्यंत उन्नत चरित स्त्री-पुरूषों को जन्म दिया हैं। अब इन प्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद भी कोई ऐसा स्वप्न देखें कि अन्यान्य सारे धर्म नष्ट हो जाएंगे और केवल उसका धर्म ही जीवित रहेगा, तो उस पर मैं अपने हृदय के अंतराल से दया करता हूँ और उसे स्पष्ट बतलाए देता हूँ कि शीघ्र ही सारे प्रतिरोधों के बावजूद प्रत्येक धर्म की पताका पर यह लिखा रहेगा – 'सहायता करो, लड़ो मत' ; 'पर-भाव-ग्रहण, न कि पर-भाव-विनाश' ; 'समन्वय और शांति , न कि मतभेद और कलह!'
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